मिलिंद जोशी कविता / मैं वह भाषा हूं, जिसमें तुम जीवन साज पे संगत देते मैं वह भाषा हूं, जिसमें तुम, भाव नदी का अमृत पीते मैं वह भाषा हूं, जिसमें तुमने बचपन खेला और बढ़े हूं वह भाषा, जिसमें तुमने यौवन, प्रीत के पाठ पढ़े.